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अध्याय-एक
अस्माकं तु विशिष्टा ये तान्निबोध द्विजोत्तम|
नायका मम सैन्यस्य संज्ञार्थं तान्ब्रवीमि ते ||7||

द्विजोत्तम = हे द्विजोत्तम; अस्माकम्‌ = हमारे पक्षमें; तु = भी; ये = जो; विशिष्टाः = मुख्य (है); तान्‌ =उनपर (भी आप); निबोध =ध्यान दीजिये; ते = आपको; सञ्जञर्थम्‌ = याद दिलाने के लिये; मम =मेरी; सैन्यस्य =सेनाके (जो); नायकाः =नायक हे; तान्‌ = उनको (मै); व्रवीमि =कहता हूं

 

व्याख्या – हे द्विजोत्तम, हमारे पक्षमें भी जो मुख्य है उनपर भी आप ध्यान दीजिये आपको याद दिलाने के लिये मेरी सेनाके जो नायक हे उनको मै कहता हूं|

 

इस श्लोकमें दुर्योधनका ऐसा भाव प्रतीत होता है कि हमारा पक्ष किसी भी तरह कमजोर नहीं है । परन्तु राजनीतिके अनुसार शत्रुपक्ष चाहे कितना ही कमजोर हो और अपना पक्ष चाहे कितना ही सबल हो, ऐसी अवस्था में भी शत्रुपक्षको कमजोर नहीं समझना चाहिये और अपनेमें उपेक्षा, उदासीनता आदिकी भावना किंचिन्मात्र भी नहीं आने देनी चाहिये। इसलिये सावधानीके लिये मैंने उनकी सेनाकी बात कही और अब अपनी सेनाकी बात कहता हूँ ।