भवान् = आप (द्रोणाचार्य); च = ओर ; भीष्म: = पितामह भीष्म; च =तथा; कर्णः = कर्ण; च =ओर; समितिञ्जयः = संग्रामविजयी; कृपः = कृपाचार्य; च = तथा; तथा = वेसे; एव = ही; अश्वत्थामा = अश्वत्थामा; च = ओर; विकर्णः = विकर्ण; च = ओर; सोमदत्तः = सोमदत्तका पुत्र भूरिश्रवा।
व्याख्या: आप (द्रोणाचार्य) ओर पितामह भीष्म, कर्ण ओर संग्राम विजयी कृपाचार्य तथा वेसे ही अश्वत्थामा ओर विकर्ण ओर सोमदत्तका पुत्र भूरिश्रवा।
यहाँ इन शूरवीरोंके नाम लेनेमें दुर्योधनका यह भाव मालूम देता है कि हे आचार्य ! हमारी सेनामें आप, भीष्म, कर्ण, कृपाचार्य आदि जैसे महान् पराक्रमी शूरवीर हैं, ऐसे पाण्डवोंकी सेनामें देखनेमें नहीं आते। हमारी सेनामें कृपाचार्य और अश्वत्थामा – ये दो चिरंजीवी हैं, जबकि पाण्डवोंकी सेनामें ऐसा एक भी नहीं है । हमारी सेनामें धर्मात्माओंकी भी कमी नहीं है। इसलिये हमारे लिये डरनेकी कोई बात नहीं है।